ना-ख़ुदा छोड़ गए बीच भँवर में तो 'ज़फ़र'
एक तिनके के सहारे ने कहा बिस्मिल्लाह
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बदन से रूह तलक हम लहू लहू हुए हैं
ख़ुशा ऐ ज़ख़्म कि सूरत नई निकलती है
जान-ए-बे-ताब अजब तेरे ठिकाने निकले
ख़याल-ए-ताज़ा से करते हैं ख़्वाब-ए-नौ तख़्लीक़
कास-ए-दर्द लिए कब से खड़े सोचते हैं
इक ऐसा वक़्त भी सैर-ए-चमन में देखा है
आ के जब ख़्वाब तुम्हारे ने कहा बिस्मिल्लाह
हर सम्त शोर-ए-बंदा ओ साहिब है शहर में
सब बड़े ज़ोम से आए थे नए सूरत-गर
उम्मीद-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ से खींचते हैं
तू ने क्यूँ हम से तवक़्क़ो न मुसाफ़िर रक्खी
किसी के रास्ते की ख़ाक में पड़े हैं 'ज़फ़र'