दीपक Poetry (page 20)

मलबे से जो मिली हैं वो लाशें दिखाइए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रौशन दिल वालों के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुकालिमा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मोहब्बत की एक नज़्म

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरा ज़ेहन मुझ को रहा करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कूच

इफ़्तिख़ार आरिफ़

वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

थकन तो अगले सफ़र के लिए बहाना था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अहल-ए-मोहब्बत की मजबूरी बढ़ती जाती है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रह-ए-जुस्तुजू में भटक गए तो किसी से कोई गिला नहीं

इफ़्फ़त अब्बास

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

दोस्त कुछ और भी हैं तेरे अलावा मिरे दोस्त

इदरीस बाबर

दैर-ओ-हरम में दश्त-ओ-बयाबान-ओ-बाग़ में

इब्राहीम होश

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

सुबूत-ए-जुर्म न मिलने का फिर बहाना किया

हुसैन ताज रिज़वी

रौशनी में खोई गई रौशनी

हुसैन आबिद

रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़

हुरमतुल इकराम

फ़सील शहर की इतनी बुलंद ओ सख़्त हुई

हुमैरा रहमान

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

ये विसाल ओ हिज्र का मसअला तो मिरी समझ में न आ सका

हिलाल फ़रीद

तड़प के हाल सुनाया तो आँख भर आई

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

दिल में इक शोर उठाते हैं चले जाते हैं

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में

हस्तीमल हस्ती

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