दर Poetry (page 102)

हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए

आनन्द सरूप अंजुम

हर दुआ होगी बे-असर न समझ

आनन्द सरूप अंजुम

सलोनी सर्दियों की नज़्म

आमिर सुहैल

वही आँगन वही खिड़की वही दर याद आता है

आलोक श्रीवास्तव

हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को

आले रज़ा रज़ा

जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़ुश्क खेती है मगर उस को हरी कहते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

जिस ने किए हैं फूल निछावर कभी कभी

आल-ए-अहमद सूरूर

सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता

आग़ा अकबराबादी

नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ

आग़ा अकबराबादी

क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव

आग़ा अकबराबादी

जा लड़ी यार से हमारी आँख

आग़ा अकबराबादी

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

हिन्दोस्ताँ

आफ़ताब राईस पानीपती

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