दर Poetry (page 100)

नक़्श-ए-दिल है सितम जुदाई का

अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़

फूली है शफ़क़ गो कि अभी शाम नहीं है

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

हों क्यूँ न मुन्कशिफ़ असरार पस्त-ओ-बाला के

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

ग़ुंचे का जवाब हो गया है

अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत

बाम-ओ-दर की रौशनी फिर क्यूँ बुलाती है मुझे

अब्दुल अहद साज़

पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात

अब्दुल अहद साज़

ईद उस परी-वश की

अब्दुल अहद साज़

अलविदा

अब्दुल अहद साज़

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया

अब्दुल अहद साज़

लम्हा-ए-तख़्लीक़ बख़्शा उस ने मुझ को भीक में

अब्दुल अहद साज़

खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है

अब्दुल अहद साज़

बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे

अब्दुल अहद साज़

बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे

अब्दुल अहद साज़

बातिन से सदफ़ के दुर-ए-नायाब खुलेंगे

अब्दुल अहद साज़

झोंके के साथ छत गई दस्तक के साथ दर गया

अब्बास ताबिश

फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता

अब्बास ताबिश

एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'

अब्बास ताबिश

पागल

अब्बास ताबिश

अभी उस की ज़रूरत थी

अब्बास ताबिश

ये वाहिमे भी अजब बाम-ओ-दर बनाते हैं

अब्बास ताबिश

ये अजब साअत-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है

अब्बास ताबिश

उस का ख़याल ख़्वाब के दर से निकल गया

अब्बास ताबिश

तेरी आँखों से अपनी तरफ़ देखना भी अकारत गया

अब्बास ताबिश

सुब्ह की पहली किरन पहली नज़र से पहले

अब्बास ताबिश

रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया

अब्बास ताबिश

रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ

अब्बास ताबिश

परिंदे पूछते हैं तुम ने क्या क़ुसूर किया

अब्बास ताबिश

नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है

अब्बास ताबिश

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