दर Poetry (page 98)

धूप चमकी रात की तस्वीर पीली हो गई

अबरार आज़मी

ज़िंदा आदमी से कलाम

अबरार अहमद

बारिश

अबरार अहमद

ये रह-ए-इश्क़ है इस राह पे गर जाएगा तू

अबरार अहमद

गुरेज़ाँ था मगर ऐसा नहीं था

अबरार अहमद

कहीं से बास नए मौसमों की लाती हुई

आबिद सयाल

कहीं से बास नए मौसमों की लाती हुई

आबिद सयाल

उस के डर ही से मैं मोहज़्ज़ब हूँ

आबिद सिद्दीक़

चाँदनी रात है उदासी है

आबिद सिद्दीक़

दश्त में छाँव कोई ढूँड निकाली जाए

आबिद करहानी

क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा

आबिद आलमी

दे गया आख़िरी सदा कोई

आबिद आलमी

जो कहते हैं किधर दीवानगी है

आबिद अख़्तर

सफ़र के बा'द भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए

अभिषेक शुक्ला

चलते हुए मुझ में कहीं ठहरा हुआ तू है

अभिषेक शुक्ला

गरचे नेज़ों पे सर है

अब्दुस्समद ’तपिश’

फ़रेब-ए-ज़ार मोहब्बत-नगर खुला हुआ है

अब्दुर्राहमान वासिफ़

दिल में लिए औहाम को इस घर से उठा मैं

अब्दुर्राहमान वासिफ़

आज यादों ने अजब रंग बिखेरे दिल में

अब्दुर रऊफ़ उरूज

वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा

अब्दुर्रहीम नश्तर

लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

का'बा है कभी तो कभी बुत-ख़ाना बना है

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

दिल दिया वहशत लिया और ख़ुद को रुस्वा कर लिया

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

अना रही न मिरी मुतलक़-उल-इनानी की

अब्दुल्लाह कमाल

कभी सोचा है मिट्टी के अलावा

अब्दुल्लाह जावेद

देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल

अब्दुल्लाह जावेद

समुंदर पार आ बैठे मगर क्या

अब्दुल्लाह जावेद

कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा

अब्दुल्लाह जावेद

जो गुज़रता है गुज़र जाए जी

अब्दुल्लाह जावेद

जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं

अब्दुल्लाह जावेद

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