दर Poetry (page 99)

चाँदनी रात में हर दर्द सँवर जाता है

अब्दुल्लाह जावेद

चाँदनी का रक़्स दरिया पर नहीं देखा गया

अब्दुल्लाह जावेद

इश्क़ के फ़न नीं हूँ मैं अवधूत

अब्दुल वहाब यकरू

तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है

अब्दुल वहाब यकरू

इस तरह रुख़ फेरते हो सुनते ही बोसे की बात

अब्दुल वहाब यकरू

हमें नसीब कोई दीदा-वर नहीं होता

अब्दुल वहाब सुख़न

यूँ अश्क बरसते हैं मिरे दीदा-ए-तर से

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

क्या क्या सुपुर्द-ए-ख़ाक हुए नामवर तमाम

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

दिल उन की मोहब्बत का जो दीवाना लगे है

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

नहीं सुनता नहीं आता नहीं बस मेरा चलता है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

म्याँ क्या हो गर अबरू-ए-ख़मदार को देखा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

जान अपनी चली जाए हे जाए से कसू की

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ग़म याँ तो बिका हुआ खड़ा है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दोश-ब-दोश दोश था मुझ से बुत-ए-करिश्मा-कोश

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दिल तो हाज़िर है अगर कीजिए फिर नाज़ से रम्ज़

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

जब निगाह-ए-तलब मो'तबर हो गई

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मेरे घर से उस की यादों के मकीं जाते नहीं

अब्दुल मन्नान समदी

बदलते मौसमों में आब-ओ-दाना भी नहीं होगा

अब्दुल मन्नान समदी

वक़्त अब सर पे वो आया है कि सर याद नहीं

अब्दुल मलिक सोज़

जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए

अब्दुल हमीद अदम

साक़ी शराब ला कि तबीअ'त उदास है

अब्दुल हमीद अदम

जहाँ वो ज़ुल्फ़-ए-बरहम कारगर महसूस होती है

अब्दुल हमीद अदम

देख कर दिल-कशी ज़माने की

अब्दुल हमीद अदम

कितनी महबूब थी ज़िंदगी कुछ नहीं कुछ नहीं

अब्दुल हमीद

किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्या

अब्दुल हमीद

लहू की बूँद मिस्ल-ए-आइना हर दर पे रक्खी थी

अब्दुल हमीद साक़ी

गर्द-ए-फ़िराक़ ग़ाज़ा कश-ए-आइना न हो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

बहार बन के ख़िज़ाँ को न यूँ दिलासा दे

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

फिर रग-शो'ला-ए-जाँ-सोज़ में नश्तर गुज़रा

अब्दुल हादी वफ़ा

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