दर Poetry (page 97)

बेबसी की धूप है ग़मगीन क्या

आदिल हयात

तेरे लिए चले थे हम तेरे लिए ठहर गए

अदीम हाशमी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

कोई पत्थर कोई गुहर क्यूँ है

अदीम हाशमी

किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता

अदीम हाशमी

बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई

अदीम हाशमी

ऐसा भी नहीं उस से मिला दे कोई आ कर

अदीम हाशमी

ये ज़मीनी भी है ज़मानी भी

अदील ज़ैदी

उस को जब कि मिरे अंजाम से कुछ काम नहीं

अदील ज़ैदी

वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी

अदीब सहारनपुरी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता

अदा जाफ़री

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

अदा जाफ़री

ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था

अदा जाफ़री

होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए

अदा जाफ़री

आँखों में रूप सुब्ह की पहली किरन सा है

अदा जाफ़री

आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था

अदा जाफ़री

नई सुब्ह चाहते हैं नई शाम चाहते हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

गया तो हुस्न न दीवार में न दर में था

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

अबु मोहम्मद वासिल

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा

अबु मोहम्मद सहर

इश्क़ की सई-ए-बद-अंजाम से डर भी न सके

अबु मोहम्मद सहर

ये सब्ज़ा और ये आब-ए-रवाँ और अब्र ये गहरा

आबरू शाह मुबारक

ये बाव क्या फिरी कि तिरी लट पलट गई

आबरू शाह मुबारक

इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन

आबरू शाह मुबारक

हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं

आबरू शाह मुबारक

चंचलाहट में तू ममोला है

आबरू शाह मुबारक

कुछ है ख़बर फ़रिश्तों के जलते हैं पर कहाँ

अबरार शाहजहाँपुरी

ख़ुशनुमा दीवार-ओ-दर के ख़्वाब ही देखा किए

अबरार आज़मी

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