दर Poetry (page 95)

ग़ुरूर-ए-जाँ को मिरे यार बेच देते हैं

अहमद फ़राज़

ग़ैरत-ए-इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी

अहमद फ़राज़

दिल मुनाफ़िक़ था शब-ए-हिज्र में सोया कैसा

अहमद फ़राज़

चल निकलती हैं ग़म-ए-यार से बातें क्या क्या

अहमद फ़राज़

भेद पाएँ तो रह-ए-यार में गुम हो जाएँ

अहमद फ़राज़

अजब जुनून-ए-मसाफ़त में घर से निकला था

अहमद फ़राज़

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा

अहमद फ़राज़

मैं तो सोया भी न था क्यूँ ये दर-ए-ख़्वाब गिरा

अहमद अज़ीम

दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया

अहमद अज़ीम

ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है

अहमद अज़ीम

ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए

अहमद अज़ीम

अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए

अहमद अज़ीम

वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में

अहमद अता

हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं

अहमद अता

सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से

अहमद अशफ़ाक़

सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आज

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

कौन है किस का ये पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

इब्न-ए-आदम बरसर पैकार है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

तलाश-ए-क़ब्र में यूँ घर से हम निकल के चले

आग़ा हज्जू शरफ़

फ़ुसूँ टूटता है

अफ़ज़ल परवेज़

दिखाई दे कि शुआ-ए-बसीर खींचता हूँ

अफ़ज़ाल नवेद

बाग़ क्या क्या शजर दिखाते हैं

अफ़ज़ाल नवेद

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

अफ़ज़ाल नवेद

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

जब इक सराब में प्यासों को प्यास उतारती है

अफ़ज़ल ख़ान

नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से

अफ़ज़ल गौहर राव

इसी लिए भी नए सफ़र से बंधे हुए हैं

अफ़ज़ल गौहर राव

लुटा रहा हूँ मैं लाल-ओ-गुहर अँधेरे में

अफ़ज़ल इलाहाबादी

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