दर Poetry (page 2)

पहचान

फ़ैसल हाश्मी

ऐ हवा शोर कर

मोईन निज़ामी

आख़िरी आदमी

फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी

तिश्नगी

अनीस अहमद अनीस

क़र्या-ए-वीराँ

मुख़्तार सिद्दीक़ी

अपने शहर के लिए दुआ

मुनीर नियाज़ी

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

मैं ज़ेर-ए-लब अपना शजरा-ए-नसब दोहरा रहा था

जवाज़ जाफ़री

विसाल

बशर नवाज़

अंदेशा

फ़ैसल हाश्मी

ख़्वाब

तेरी नज़रों से यार उतर जाऊँ

इस दिल से मिरे इश्क़ के अरमाँ को निकालो

बदन को छू लें तिरे और सुर्ख़-रू हो लें

ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश

सुन ऐ कोह-ओ-दमन को सब्ज़ ख़िलअत बख़्शने वाले

आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ

दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

दाग़-ए-दिल दाग़-ए-तमन्ना मिल गया

खींच ली थी इक लकीर-ए-ना-रसा ख़ुद दरमियाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ज़ेर-ए-बाम गुम्बद-ए-ख़ज़रा अज़ाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

सिलसिला-दर-सिलसिला जुज़्व-ए-अदा होना ही था

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

सदियों के बाद होश में जो आ रहा हूँ मैं

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

मिरी ख़ाक में विला का न कोई शरार होता

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ख़ामोश ज़मज़मे हैं मिरा हर्फ़-ए-ज़ार चुप

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

दूर तक इक सराब देखा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

बेचैनी के लम्हे साँसें पत्थर की

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

ये दर-ओ-दीवार पर बे-नाम से चुप-चाप साए

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

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