दर्द Poetry (page 41)

दिल किस के तसव्वुर में जाने रातों को परेशाँ होता है

इब्न-ए-इंशा

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

उस के सिवा क्या अपनी दौलत

हुरमतुल इकराम

तय किया इस तरह सफ़र तन्हा

हुरमतुल इकराम

रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले

हुरमतुल इकराम

जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है

हुरमतुल इकराम

दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है

हुरमतुल इकराम

हर एक ख़्वाब की ताबीर थोड़ी होती है

हुमैरा राहत

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

आईना-दर-आईना

हिमायत अली शाएर

क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए

हिमायत अली शाएर

आज फिर दब गईं दर्द की सिसकियाँ

हिलाल फ़रीद

रास्ता देर तक सोचता रह गया

हिलाल फ़रीद

न दर्द था न ख़लिश थी न तिलमिलाना था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

तुम भी निगाह में हो अदू भी नज़र में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

मिरे शाने पे रहने दो अभी गेसू ज़रा ठहरो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

मिरे रियाज़ का आख़िर असर दिखाई दिया

हज़ीं लुधियानवी

इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ

हज़ीं लुधियानवी

निगाह-ए-शौक़ अगर दिल की तर्जुमाँ हो जाए

हया लखनवी

चमन वही है घटाएँ वही बहार वही

हया लखनवी

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

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