दर्द Poetry (page 40)

रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बन-बास

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सुख़न-ए-हक़ को फ़ज़ीलत नहीं मिलने वाली

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुल्क-ए-सुख़न में दर्द की दौलत को क्या हुआ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ भी नहीं कहीं नहीं ख़्वाब के इख़्तियार में

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एहसास

इफ़्तिख़ार आज़मी

न दिल में कोई ग़म रहे न मेरी आँख नम रहे

इब्राहीम अश्क

दरिया में है सराब अजब इब्तिला में हूँ

इब्राहीम होश

शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं

इब्न-ए-मुफ़्ती

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की

इब्न-ए-इंशा

आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई

इब्न-ए-इंशा

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

ये कौन आया

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

कल हम ने सपना देखा है

इब्न-ए-इंशा

घूम रहा है पीत का प्यासा

इब्न-ए-इंशा

दरवाज़ा खुला रखना

इब्न-ए-इंशा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी है नाम उन्ही का चाहो तो तुम से मिलवाएँ

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

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