रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा
अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली
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ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
मोहब्बत की एक नज़्म
ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
हमें भी आफ़ियत-ए-जाँ का है ख़याल बहुत
ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए
वो हम नहीं थे तो फिर कौन था सर-ए-बाज़ार
सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा
कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए
मंसब न कुलाह चाहता हूँ
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में