रंग से ख़ुशबुओं का नाता टूटता जाता है
फूल से लोग ख़िज़ाओं जैसी बातें करते हैं
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
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हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में
दुनिया बदल रही है ज़माने के साथ साथ
बारहवाँ खिलाड़ी
दिल उन के साथ मगर तेग़ और शख़्स के साथ
मिट्टी की मोहब्बत में हम आशुफ़्ता-सरों ने
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख
वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ
एक उदास शाम के नाम
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
मिरे सारे हर्फ़ तमाम हर्फ़ अज़ाब थे
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
शिकस्ता-पर जुनूँ को आज़माएँगे नहीं क्या