दुनिया बदल रही है ज़माने के साथ साथ
अब रोज़ रोज़ देखने वाला कहाँ से लाएँ
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(994) Peoples Rate This
कोई मुज़्दा न बशारत न दुआ चाहती है
मैं उस से झूट भी बोलूँ तो मुझ से सच बोले
जवाब आए न आए सवाल उठा तो सही
यक़ीन से यादों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता
पयम्बरों से ज़मीनें वफ़ा नहीं करतीं
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
बदन-दरीदा रूहों के नाम एक नज़्म
सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा
मंज़र से हैं न दीदा-ए-बीना के दम से हैं