दर्द Poetry (page 48)

ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

इस तरह दर्द का तुम अपने मुदावा करना

हबीब आरवी

दश्त-ए-ग़म में साया-ए-गेसू न ढूँढ

हबाब तिर्मिज़ी

लैंडस्केप

गुलज़ार

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता

गुलज़ार

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है

गुलज़ार

कोई अटका हुआ है पल शायद

गुलज़ार

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं

गुलज़ार

गुलों को सुनना ज़रा तुम सदाएँ भेजी हैं

गुलज़ार

उठो गले से लिपट जाओ फिर निखर लेना

गुलशनुद्दौला बहार

दर्द

गुलनाज़ कौसर

शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है

गुलनार आफ़रीन

आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं

गुलनार आफ़रीन

इश्क़ में दर्द से है हुर्मत-ए-दिल

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

मुँह ढाँप के मैं जो रो रहा हूँ

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

लब-ए-जाँ-बख़्श पे दम अपना फ़ना होता है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

उल्फ़त का दर्द-ए-ग़म का परस्तार कौन है

गोविन्द गुलशन

गिला क्या करूँ ऐ फ़लक बता मिरे हक़ में जब ये जहाँ नहीं

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

जब चले जाएँगे हम लौट के सावन की तरह

गोपालदास नीरज

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए

गोपालदास नीरज

बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

जिन की दर्द-भरी बातों से एक ज़माना राम हुआ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहफ़-उल-क़हत

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर तो इस बे-नाम सफ़र में कुछ भी न अपने पास रहा

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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