दर्द Poetry (page 50)

जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है

ग़ालिब

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो

ग़ालिब

है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा

ग़ालिब

ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है

ग़ालिब

ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ

ग़ालिब

गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है

ग़ालिब

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ग़ालिब

धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था

ग़ालिब

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

ग़ालिब

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे

ग़ालिब

आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं

ग़ालिब

दिल अगर माइल-ए-इ'ताब न हो

ग़व्वास क़ुरैशी

ये सहरा-ए-तलब या बेशा-ए-आशुफ़्ता-हाली है

गौहर होशियारपुरी

मरहला तय कोई बे-मिन्नत-ए-जादा भी तो हो

गौहर होशियारपुरी

मैं ख़ुद ही ख़ूगर-ए-ख़लिश-ए-जुस्तुजू न था

गौहर होशियारपुरी

किस दर्द से रौशन है सियह-ख़ाना-ए-हस्ती

फ़ुज़ैल जाफ़री

आठों पहर लहू में नहाया करे कोई

फ़ुज़ैल जाफ़री

मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़र जाती है हर रात मिरे

फ़ुज़ैल जाफ़री

मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद

फ़ुज़ैल जाफ़री

ख़ुद लफ़्ज़ पस-ए-लफ़्ज़ कभी देख सके भी

फ़ुज़ैल जाफ़री

दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया

फ़ुज़ैल जाफ़री

आठों पहर लहू में नहाया करे कोई

फ़ुज़ैल जाफ़री

आख़िर चराग़-ए-दर्द-ए-मोहब्बत बुझा दिया

फ़ुज़ैल जाफ़री

मेहनत-ओ-दर्द-ओ-रंज-ओ-ग़म और अलम ये रात दिन

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

तमाम उम्र जो हँसता ही रह गया यारो

फ़िरदौस गयावी

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