देख Poetry (page 38)

शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का

रज़ा अज़ीमाबादी

मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ

रज़ा अज़ीमाबादी

मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से

रज़ा अज़ीमाबादी

भर नज़र देखेंगे हम उस को मिला जानाँ अगर

रज़ा अज़ीमाबादी

अब इस से क्या ग़रज़ ये हरम है कि दैर है

रविश सिद्दीक़ी

उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर

रविश सिद्दीक़ी

पास-ए-वहशत है तो याद-ए-रुख़-ए-लैला भी न कर

रविश सिद्दीक़ी

दाम फैलाए हुए हिर्स-ओ-हवा हैं कितने

रौशन नगीनवी

नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है

रौनक़ टोंकवी

धरती से दूर हैं न क़रीब आसमाँ से हम

रऊफ़ ख़ैर

सुब्ह-नुशूर क्यूँ मिरी आँखों में नूर आ गया

रसूल साक़ी

जोश पर रंग-ए-तरब देख के मयख़ाने का

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

ग़फ़लत में कटी उम्र न हुश्यार हुए हम

रासिख़ अज़ीमाबादी

दिल ज़ुल्फ़-ए-बुताँ में है गिरफ़्तार हमारा

रासिख़ अज़ीमाबादी

शम्अ' में सोज़ की वो ख़ू है न परवाने में

रशीद शाहजहाँपुरी

ये जो मेरे अंदर फैली ख़ामोशी है

राशिद क़य्यूम अनसर

हर ख़ुशी तेरे नाम की मैं ने

राशिद क़य्यूम अनसर

हाथ से छू कर ये नीला आसमाँ भी देखते

राशिद मुफ़्ती

अब क्या गिला कि रूह को खिलने नहीं दिया

राशिद मुफ़्ती

ख़मोश झील में गिर्दाब देख लेते हैं

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

आस-महल

राशिद हसन राना

आँख खुली तो मुझ को ये इदराक हुआ

राशिद हामिदी

नदी को देख कर

राशिद अनवर राशिद

ज़माना गुज़रा है लहरों से जंग करते हुए

राशिद अनवर राशिद

नज़र में धूल फ़ज़ा में ग़ुबार चारों तरफ़

राशिद अनवर राशिद

इंकिशाफ़

राशिद आज़र

मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते

राशिद आज़र

तुझ से क़रीब-तर तिरी तन्हाइयों में हूँ

रशीदुज़्ज़फ़र

रुके हुए हैं जो दरिया उन्हें रवानी दे

रशीदुज़्ज़फ़र

आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले

रशीद रामपुरी

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