देख Poetry (page 39)

मिरे घर के लोग जो घर मुझी को सुपुर्द कर के चले गए

रशीद रामपुरी

मेरे लिए तो हर्फ़-ए-दुआ हो गया वो शख़्स

रशीद क़ैसरानी

मैं उसे अपने मुक़ाबिल देख कर घबरा गया

रशीद निसार

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

उक़्दे उल्फ़त के सब ऐ रश्क-ए-क़मर खोल दिए

रशीद लखनवी

नज़र कर तेज़ है तक़दीर मिट्टी की कि पत्थर की

रशीद लखनवी

जोश-ए-वहशत मेरे तलवों को ये ईज़ा भी सही

रशीद लखनवी

जी चाहा जिधर छोड़ दिया तीर अदा को

रसा रामपुरी

सामने जी सँभाल कर रखना

रसा चुग़ताई

रात क्या सोच रहा था मैं भी

रसा चुग़ताई

इस से पहले नज़र नहीं आया

रसा चुग़ताई

रोता हमें जो देखा दिल उस का पिघल गया

रंजूर अज़ीमाबादी

देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़

रंजूर अज़ीमाबादी

उस के कूचे में बहुत रहते हैं दीवाने पड़े

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

ग़ैर की ख़ातिर से तुम यारों को धमकाने लगे

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

ज़िंदगी देख तिरी ख़ास रिआयत होगी

राना आमिर लियाक़त

ईंट से ईंट जोड़ कर, ख़्वाब बना रहा हूँ मैं

राना आमिर लियाक़त

तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में

राना आमिर लियाक़त

एक दो ख़्वाब अगर देख लिए जाएँगे

राना आमिर लियाक़त

सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज़ दुआ से

राना अकबराबादी

ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा

रम्ज़ी असीम

नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं

रम्ज़ी असीम

कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ

रम्ज़ी असीम

इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे

रम्ज़ी असीम

निगाह तूर पे है और जमाल सीने में

रम्ज़ अज़ीमाबादी

ये घनी छाँव ये ठंडक ये दिल-ओ-जाँ का सुकूँ

राम कृष्ण मुज़्तर

फिर कोई ख़लिश नज़्द-ए-राग-ए-जाँ तो नहीं है

राम कृष्ण मुज़्तर

क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

औरत कुत्ता और पड़ोस

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो बात बात पे जी भर के बोलने वाला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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