देख Poetry (page 83)

खो के देखा था पा के देख लिया

अबु मोहम्मद सहर

तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी

आबरू शाह मुबारक

क़द सर्व चश्म नर्गिस रुख़ गुल दहान ग़ुंचा

आबरू शाह मुबारक

ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे

आबरू शाह मुबारक

अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया

आबरू शाह मुबारक

ये बाव क्या फिरी कि तिरी लट पलट गई

आबरू शाह मुबारक

याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या

आबरू शाह मुबारक

तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है

आबरू शाह मुबारक

सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं

आबरू शाह मुबारक

साँप सर मार अगर जो जावे मर

आबरू शाह मुबारक

रखे कोई इस तरह के लालची को कब तलक बहला

आबरू शाह मुबारक

निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है

आबरू शाह मुबारक

न पावे चाल तेरे की पियारे ये ढलक दरिया

आबरू शाह मुबारक

मोहब्बत सेहर है यारो अगर हासिल हो यक-रूई

आबरू शाह मुबारक

क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला

आबरू शाह मुबारक

कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत

आबरू शाह मुबारक

जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम

आबरू शाह मुबारक

जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला

आबरू शाह मुबारक

जाल में जिस के शौक़ आई है

आबरू शाह मुबारक

इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन

आबरू शाह मुबारक

हमारे साँवले कूँ देख कर जी में जली जामुन

आबरू शाह मुबारक

फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है

आबरू शाह मुबारक

दिल नीं पकड़ी है यार की सूरत

आबरू शाह मुबारक

बहार आई गली की तरह दिल खोल

आबरू शाह मुबारक

आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है

आबरू शाह मुबारक

ख़ुश-बख़्त हैं आज़ाद हैं जो अपने सुख़न में

अबरार हामिद

बहुत तज़्किरा दास्तानों में था

अबरार आज़मी

हवा जब तेज़ चलती है

अबरार अहमद

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