देख Poetry (page 82)

बुध

आदिल मंसूरी

फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से

आदिल मंसूरी

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख

आदिल मंसूरी

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

आदिल मंसूरी

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

आदिल मंसूरी

चेहरे पे चमचमाती हुई धूप मर गई

आदिल मंसूरी

वो जो तर्क-ए-रब्त का अहद था कहीं टूटने तो नहीं लगा

अदीम हाशमी

उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए

अदीम हाशमी

मुफ़ाहमत न सिखा जब्र-ए-नारवा से मुझे

अदीम हाशमी

चल दिया वो देख कर पहलू मिरी तक़्सीर का

अदीम हाशमी

आया हूँ संग ओ ख़िश्त के अम्बार देख कर

अदीम हाशमी

जहान-ए-इल्म का बाब-ए-निसाब होते हुए

अदील ज़ैदी

वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी

अदीब सहारनपुरी

नहीं किसी की तवज्जोह ख़ुद-आगही की तरफ़

अदीब सहारनपुरी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

आ देख कि मेरे आँसुओं में

अदा जाफ़री

साज़-ए-सुख़न बहाना है

अदा जाफ़री

ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने

अदा जाफ़री

वैसे ही ख़याल आ गया है

अदा जाफ़री

उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता

अदा जाफ़री

मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने

अदा जाफ़री

क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ

अदा जाफ़री

ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई

अदा जाफ़री

दिल को हम दरिया कहें मंज़र-निगारी और क्या

अबुल हसनात हक़्क़ी

ख़ामोश इस तरह से न जल कर धुआँ उठा

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया

अबु मोहम्मद वासिल

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

अबु मोहम्मद वासिल

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

फिर खुले इब्तिदा-ए-इश्क़ के बाब

अबु मोहम्मद सहर

बे-रब्ती-ए-हयात का मंज़र भी देख ले

अबु मोहम्मद सहर

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