देख Poetry (page 81)

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

अफ़ज़ाल नवेद

उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

लोग हँसने के लिए रोते हैं अक्सर दहर में

अफ़ज़ल मिनहास

काँच की ज़ंजीर टूटी तो सदा भी आएगी

अफ़ज़ल मिनहास

जाने क्या क्या ज़ुल्म परिंदे देख के आते हैं

अफ़ज़ल ख़ान

उस लम्हे तिश्ना-लब रेत भी पानी होती है

अफ़ज़ल ख़ान

ये हक़ीक़त है वो कमज़ोर हुआ करती हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

मिरी दीवानगी की हद न पूछो तुम कहाँ तक है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

ग़ज़ल का हुस्न है और गीत का शबाब है वो

अफ़ज़ल इलाहाबादी

वो अपने आँसू एक नाज़ुक हेयर ड्रायर से सुखाती है

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

मोहब्बत

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

यादें

आफ़ताब शम्सी

रात, मामूल और हम

आफ़ताब शम्सी

नर्स

आफ़ताब शम्सी

सभी बिछड़ गए मुझ से गुज़रते पल की तरह

आफ़ताब शम्सी

बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देख

आफ़ताब हुसैन

तुम्हारे बाद रहा क्या है देखने के लिए

आफ़ताब हुसैन

निगाह के लिए इक ख़्वाब भी ग़नीमत है

आफ़ताब हुसैन

किसी तरह भी तो वो राह पर नहीं आया

आफ़ताब हुसैन

मुमकिन है शय वही हो मगर हू-ब-हू न हो

आफ़ताब अहमद

शब को पाज़ेब की झंकार सी आ जाती है

अफ़सर माहपुरी

मेरे लिए साहिल का नज़ारा भी बहुत है

अफ़सर माहपुरी

फ़लक उन से जो बढ़ कर बद-चलन होता तो क्या होता

अफ़सर इलाहाबादी

फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख

अफ़रोज़ आलम

मेरे जुनून-ए-शौक़ को इतनी सी काएनात बस

अफ़ीफ़ सिराज

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर

आदिल मंसूरी

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

आदिल मंसूरी

दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं

आदिल मंसूरी

चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं

आदिल मंसूरी

एक नज़्म

आदिल मंसूरी

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