देर Poetry (page 7)

दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए

सिद्दीक़ मुजीबी

मसअले का हल न निकला देर तक

श्याम सुन्दर नंदा नूर

एहसास की दीवार गिरा दी है चला जा

शोज़ेब काशिर

मुँह से तिरे सौ बार के शरमाए हुए हैं

शोला अलीगढ़ी

सारा जहान छोड़ के तुम से ही प्यार था

शोभा कुक्कल

दिल-ए-आबाद का बर्बाद भी होना ज़रूरी है

शोएब बिन अज़ीज़

दाग़ जो अब तक अयाँ हैं वो बता कैसे मिटें

शिवकुमार बिलग्रामी

कुछ अकेली नहीं मेरी क़िस्मत

शिबली नोमानी

नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए

ज़ौक़

क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद

ज़ौक़

हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से

ज़ौक़

देखो फ़िराक़-ए-यार में जाँ खो रहा है वो

शहज़ाद रज़ा लम्स

मैं लौट आऊँ कहीं तू ये सोचता ही न हो

शाज़ तमकनत

बात हो दैर-ओ-हरम की या वतन की बात हो

शायान क़ुरैशी

शैख़ ओ बरहमन दोनों हैं बर-हक़ दोनों का हर काम मुनासिब

शौक़ बहराइची

रुका महफ़िल में इतनी देर तक मैं

शारिक़ कैफ़ी

यही रस्सी मिली थी

शारिक़ कैफ़ी

वो बकरा फिर अकेला पड़ गया है

शारिक़ कैफ़ी

तो क्या मरना भी अब मुमकिन नहीं है

शारिक़ कैफ़ी

रोता हुआ बकरा

शारिक़ कैफ़ी

जन्नत से दूर

शारिक़ कैफ़ी

इबादत के वक़्त में हिस्सा

शारिक़ कैफ़ी

जो कहता है कि दरिया देख आया

शारिक़ कैफ़ी

हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ

शारिक़ कैफ़ी

जब भी तुम्हारी याद की आहट मुझे मिली

शम्स फ़रीदी

शम्अ' पर शम्अ' जलाती हुई साथ आती है

शमीम करहानी

रखना है तो फूलों को तू रख ले निगाहों में

शमीम करहानी

मुझे दैर से तअल्लुक़ न हरम से आश्नाई

शमीम करहानी

जो देखते हुए नक़्श-ए-क़दम गए होंगे

शमीम करहानी

हमीं थे ऐसे सर-फिरे हमीं थे ऐसे मनचले

शमीम करहानी

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