देर Poetry (page 8)
गुलों पे साया-ए-ग़म-हा-ए-रोज़गार मिले
शमीम करहानी
चमन लहक के रह गया घटा मचल के रह गई
शमीम करहानी
अनमोल सही नायाब सही बे-दाम-ओ-दिरम बिक जाते हैं
शमीम करहानी
तिरे अहल-ए-दर्द के रोज़-ओ-शब इसी कश्मकश में गुज़र गए
शमीम जयपुरी
रौशनी लेने चले थे और अंधेरे छा गए
शमीम जयपुरी
जो हँस हँस के हर ग़म गवारा करे है
शमीम जयपुरी
इस इल्तिफ़ात पर कोई दामन न थाम ले
शमीम जयपुरी
बा-वफ़ाई की अदा पाने लगा हूँ तुझ में
शमीम जयपुरी
रोज़ ओ शब की गुत्थियाँ आँखों को सुलझाने न दे
शमीम हनफ़ी
इस तरह इश्क़ में बर्बाद नहीं रह सकते
शमीम हनफ़ी
बस एक वहम सताता है बार बार मुझे
शमीम हनफ़ी
बे-पर्दा उस का चेहरा-ए-पुर-नूर तो हुआ
शाकिर कलकत्तवी
ज़ात का गहरा अंधेरा है बिखर जा मुझ में
शकील मज़हरी
कहाँ है आ जा
शकील बदायुनी
उन से उम्मीद-ए-रू-नुमाई है
शकील बदायुनी
तौफ़-ए-हरम न देर की गहराइयों में है
शकील बदायुनी
क़स्र वीरान हुआ जाता है
शकील बदायुनी
नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ
शकील बदायुनी
मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं
शकील बदायुनी
लुत्फ़-ए-निगाह-ए-नाज़ की तोहमत उठाए कौन
शकील बदायुनी
जब कभी हम तिरे कूचे से गुज़र जाते हैं
शकील बदायुनी
बे-कसी से मरने मरने का भरम रह जाएगा
शकील बदायुनी
आख़िरी वक़्त है आख़िरी साँस है ज़िंदगी की है शाम आख़िरी आख़िरी
शकील बदायुनी
ज़मीन ले के वो आए तो घर बनाया जाए
शकील आज़मी
फूल का शाख़ पे आना भी बुरा लगता है
शकील आज़मी
चढ़ा हुआ है जो दरिया उतरने वाला है
शकील आज़मी
हम-सफ़र रह गए बहुत पीछे
शकेब जलाली
लरज़ता दीप
शकेब जलाली
फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को
शकेब जलाली
दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ
शकेब जलाली
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