हम-सफ़र रह गए बहुत पीछे
आओ कुछ देर को ठहर जाएँ
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रहता था सामने तिरा चेहरा खुला हुआ
दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है
पादाश
इस शोर-ए-तलातुम में कोई किस को पुकारे
वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत
मुबारक वो साअत
ख़िरद फ़रेब-ए-नज़ारों की कोई बात करो
समझ सको तो ये तिश्ना-लबी समुंदर है
रुख़्सार आज धो कर शबनम ने पंखुड़ी के
जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
रात के पिछले पहर
वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ