गले मिला न कभी चाँद बख़्त ऐसा था
हरा-भरा बदन अपना दरख़्त ऐसा था
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(472) Peoples Rate This
इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे
जब तक ग़म-ए-जहाँ के हवाले हुए नहीं
दिल सा अनमोल रतन कौन ख़रीदेगा 'शकेब'
वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था
मौज-ए-सबा रवाँ हुई रक़्स-ए-जुनूँ भी चाहिए
जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
जो मोतियों की तलब ने कभी उदास किया
आ के पत्थर तो मिरे सेहन में दो-चार गिरे
रात के पिछले पहर
उतर के नाव से भी कब सफ़र तमाम हुआ
तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे