जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
मिरी तरह से अकेला दिखाई देता है
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(512) Peoples Rate This
दश्त ओ सहरा अगर बसाए हैं
कहता है आफ़्ताब ज़रा देखना कि हम
ग़म-ए-दिल हीता-ए-तहरीर में आता ही नहीं
दर्द के मौसम का क्या होगा असर अंजान पर
बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
पादाश
तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे
दोस्ती का फ़रेब ही खाएँ
गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को
जिहत की तलाश
साहिल तमाम अश्क-ए-नदामत से अट गया