इस शोर-ए-तलातुम में कोई किस को पुकारे
कानों में यहाँ अपनी सदा तक नहीं आती
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पादाश
जिस दम क़फ़स में मौसम-ए-गुल की ख़बर गई
मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा
क्या कहिए कि अब उस की सदा तक नहीं आती
तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे
बुझे बुझे से शरारे मुझे क़ुबूल नहीं
मैं शाख़ से उड़ा था सितारों की आस में
कोई इस दिल का हाल क्या जाने
जाती है धूप उजले परों को समेट के
मुबारक वो साअत
बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका
एक अपना दिया जलाने को