एक अपना दिया जलाने को
तुम ने लाखों दिए बुझाए हैं
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
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Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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ख़मोशी बोल उठ्ठे हर नज़र पैग़ाम हो जाए
मौज-ए-सबा रवाँ हुई रक़्स-ए-जुनूँ भी चाहिए
दश्त ओ सहरा अगर बसाए हैं
'शकेब' अपने तआरुफ़ के लिए ये बात काफ़ी है
रुख़्सार आज धो कर शबनम ने पंखुड़ी के
वक़्त की डोर ख़ुदा जाने कहाँ से टूटे
कहता है आफ़्ताब ज़रा देखना कि हम
फ़सील-ए-जिस्म पे ताज़ा लहू के छींटे हैं
कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के
कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई
आग के दरमियान से निकला
गूँजता है नाला-ए-महताब आधी रात को