दिन Poetry (page 62)

स्केच

गुलज़ार

शहतूत की शाख़ पे

गुलज़ार

नज़्म

गुलज़ार

मंज़र! नर्सिंग-होम

गुलज़ार

डाइरी

गुलज़ार

बोसकी

गुलज़ार

अख़बार

गुलज़ार

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

गुलज़ार

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं

गुलज़ार

हर एक ग़म निचोड़ के हर इक बरस जिए

गुलज़ार

न कोई दीन होता है न कोई ज़ात होती है

गुलशन बरेलवी

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

शब-ए-हिज्र में एक दिन देखना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

इत्र मिट्टी का लगाया चाहिए पोशाक में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

किस क़दर मुझ को ना-तवानी है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दर्द जब जब जहाँ से गुज़रेगा

गोविन्द गुलशन

एक हुस्न-फ़रोश लड़की के नाम

गोपाल मित्तल

स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए

गोपाल मित्तल

आँख में आँसू ठहरा है

गिरिजा व्यास

एक दिन दरिया मकानों में घुसा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

शक्ल सहरा की हमेशा जानी-पहचानी रहे

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

राह से मुझ को हटा कर ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

फ़राख़-दस्त का ये हुस्न-ए-तंग-दस्ती है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

कितनी ढल गई उम्र तुम्हारी हैरत है

ग़ुलाम मोहम्मद वामिक़

तज़ाद

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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