दिया Poetry (page 88)

ख़्वाबों के ब्योपारी

अहमद फ़राज़

कर गए कूच कहाँ

अहमद फ़राज़

ईद-कार्ड

अहमद फ़राज़

भली सी एक शक्ल थी

अहमद फ़राज़

यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ

अहमद फ़राज़

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया

अहमद फ़राज़

शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो

अहमद फ़राज़

सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए

अहमद फ़राज़

नौहागरों में दीदा-ए-तर भी उसी का था

अहमद फ़राज़

कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी

अहमद फ़राज़

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

अहमद फ़राज़

हम तो ख़ुश थे कि चलो दिल का जुनूँ कुछ कम है

अहमद फ़राज़

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू

अहमद फ़राज़

हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो

अहमद फ़राज़

अब क्या सोचें क्या हालात थे किस कारन ये ज़हर पिया है

अहमद फ़राज़

चारागरों ने बाँध दिया मुझ को बख़्त से

अहमद फ़क़ीह

उस पार तो ख़ैर आसमाँ है

अहमद अज़ीमाबादी

बाज़ार की फ़सील भी रुख़्सार पर मले

अहमद अज़ीमाबादी

धुँद में खो के रह गईं सूरतें मेहर-ओ-माह सी

अहमद अज़ीम

इश्क़ में हो के मुब्तिला दिल ने कमाल कर दिया

अहमद अज़ीम

अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए

अहमद अज़ीम

वही दरिंदा

अहमद आज़ाद

जो मेरे मरने का तमाशा नहीं देखना चाहती

अहमद आज़ाद

चूहा

अहमद आज़ाद

पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए

अहमद अता

जितनी हम चाहते थे उतनी मोहब्बत नहीं दी

अहमद अशफ़ाक़

तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम मुझ को बनाने वाला

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

कर के असीर-ए-ग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा मुझे

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

मिरे करीम इनायत से तेरी क्या न मिला

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

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