दोष Poetry (page 4)

वो हसरत-ए-बहार न तूफ़ान-ए-ज़िंदगी

सफ़िया शमीम

हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैं

साबिर रज़ा

जो बू-ए-ज़िंदगी मुझे किरन किरन से आई है

साबिर आफ़ाक़ी

रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़

रियाज़ ख़ैराबादी

यूँही ज़ालिम का रहा राज अगर अब के बरस

रज़ा मौरान्वी

शिकस्त-ए-रंग-ए-तमन्ना को अर्ज़-ए-हाल कहूँ

रविश सिद्दीक़ी

बादा-ए-गुल को सब अंदोह-रुबा कहते हैं

रविश सिद्दीक़ी

लाख मुझे दोश पे सर चाहिए

राशिद मुफ़्ती

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

सदियों से मैं इस आँख की पुतली में छुपा था

रशीद क़ैसरानी

कोई तो है कि नए रास्ते दिखाए मुझे

रशीद निसार

तिरे नज़दीक आ कर सोचता हूँ

रसा चुग़ताई

कुछ इस अदा से सफ़ीरान-ए-नौ-बहार चले

रम्ज़ अज़ीमाबादी

दर्द सारे शब-ए-ख़ामोश में गिर जाते हैं

रजनीश सचन

मुज़ाहिमतों के अहद-निगार

इक़बाल कौसर

हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है

इम्दाद इमाम असर

हमीं नाशाद नज़र आते हैं दिल-शाद हैं सब

इमदाद अली बहर

चार दिन है ये जवानी न बहुत जोश में आ

इमदाद अली बहर

ज़ुहूर-ए-पैकरी सहरा में है सिर्फ़ इक निशाँ मेरा

इज्तिबा रिज़वी

एक मुद्दत से सर-ए-दोश-ए-हवा हूँ मैं भी

इफ़्फ़त अब्बास

हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है

इब्न-ए-इंशा

फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो

हुसैन ताज रिज़वी

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें

हुमैरा रहमान

हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें

हुमैरा रहमान

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

हातिम अली मेहर

बदन से रूह हम-आग़ोश होने वाली थी

हाशिम रज़ा जलालपुरी

हवा के दोश पे उड़ती हुई ख़बर तो सुनो

हसन अख्तर जलील

निभाओ अब उसे जो वज़्अ भी बना ली है

हसन अख्तर जलील

ख़ला के दश्त में ये तुर्फ़ा माजरा भी है

हसन अख्तर जलील

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