हवा के दोश पे उड़ती हुई ख़बर तो सुनो
हवा की बात बहुत दूर जाने वाली है
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जलती हुई रुतों के ख़रीदार कौन हैं
दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे
दिल को आमादा-ए-वफ़ा रखिए
मैं न दरिया हूँ न साहिल न सफ़ीना न भँवर
आरज़ू की हमा-हामी और मैं
रात लम्बी भी है और तारीक भी शब-गुज़ारी का सामाँ करो दोस्तो
ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे
फाँदती फिरती हैं एहसास के जंगल रूहें
इक भयानक तीरगी है रौशनी ऐ रौशनी
सीने में चराग़ जल रहा है
कर के संग-ए-ग़म-ए-हस्ती के हवाले मुझ को