फ़लक Poetry (page 8)

शिकार हो गया वो ख़ुद ही इस ज़माने का

सलमा शाहीन

ऐ जान-ए-जाँ तिरे मिज़ाज का फ़लक भी ख़ूब है

सलमा शाहीन

पेश-ए-इदराक मिरी फ़िक्र के शाने खुल जाएँ

सलीम शुजाअ अंसारी

अब ज़मीनों को बिछाए कि फ़लक को ओढ़े

सलीम सिद्दीक़ी

इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है

सलीम सिद्दीक़ी

न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा

सलीम कौसर

वो चाँद टूट गया जिस से रात रौशन थी

सलीम फ़िगार

आख़िरी पड़ाव

सलीम फ़िगार

ग़मों की आग पे सब ख़ाल-ओ-ख़द सँवारे गए

सलीम फ़िगार

ग़मों की आग पे सब ख़ाल-ओ-ख़द सँवारे गए

सलीम फ़िगार

देखने के लिए इक शर्त है मंज़र होना

सलीम अहमद

यूँ परेशाँ कभी हम भी तो न थे

सख़ी लख़नवी

मी-यौमिल-हिसाब

साजिदा ज़ैदी

नहीं है आशियाँ लेकिन है ख़ाक-ए-आशियाँ बाक़ी

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

ऐसी आग फ़लक से बरसेगी इक दिन

साजिद हमीद

ज़हर में डूबी हुई सुर्ख़ हिकायात में गुम

साजिद हमीद

तुम्हारे लम्स को ख़ुद मैं उतार सकता हूँ

साइम जी

क्या पूछते हो दर्द के मारों की ज़िंदगी

सैफ़ी सरौंजी

जो शिकायत-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी कभी लब पर अपने न ला सके

साइब आसमी

मुझे सोचने दे

साहिर लुधियानवी

मिरे अहद के हसीनो

साहिर लुधियानवी

नई सुब्ह

साहिर होशियारपुरी

मेरे मरने की भी उन को न ख़बर दी जाए

साहिर होशियारपुरी

क़ाबील का साया

सहर अंसारी

तंग आते भी नहीं कशमकश-ए-दहर से लोग

सहर अंसारी

इक ख़्वाब के मौहूम निशाँ ढूँड रहा था

सहर अंसारी

क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है

सग़ीर मलाल

राहज़न आदमी रहनुमा आदमी

साग़र सिद्दीक़ी

दुम

साग़र ख़य्यामी

सामने उन को पाया तो हम खो गए आज फिर हसरत-ए-गुफ़्तुगू रह गई

सबा अफ़ग़ानी

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