रोटेशन Poetry (page 12)

आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी

ग़ुबार भट्टी

रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ

ग़ालिब

क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल

ग़ालिब

सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती

ग़ालिब

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ

ग़ालिब

पा-ब-दामन हो रहा हूँ बस-कि मैं सहरा-नवर्द

ग़ालिब

मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए

ग़ालिब

लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती

ग़ालिब

जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या

ग़ालिब

हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं

ग़ालिब

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

ग़ालिब

चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है

ग़ालिब

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

ग़ालिब

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

गणेश बिहारी तर्ज़

फैमली-प्लैनिंग

फ़ुर्क़त काकोरवी

ये नहीं कसरत-ए-आलाम से जल जाते हैं

फ़ितरत अंसारी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

सर-ए-महफ़िल हमारे दिल को लूटा चश्म-ए-साक़ी ने

फ़िगार उन्नावी

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

फ़िगार उन्नावी

हासिल-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नाकाम है

फ़िगार उन्नावी

गुलज़ार में एक फूल भी ख़ंदाँ तो नहीं है

फ़ाज़िल अंसारी

अश्क आया आँख में जलता हुआ

फ़ाज़िल अंसारी

ख़िरद भी ना-मेहरबाँ रहेगी शुऊ'र भी सर-गराँ रहेगा

फ़ारिग़ बुख़ारी

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