क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल
इंसान हूँ पियाला ओ साग़र नहीं हूँ मैं
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3493) Peoples Rate This
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो
अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
क्या तंग हम सितम-ज़दगाँ का जहान है
माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं
ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़
इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं