रोटेशन Poetry (page 14)

ग़म-ए-हयात पे ख़ंदाँ हैं तेरे दीवाने

दर्शन सिंह

एक सब आग एक सब पानी

दानियाल तरीर

हाथ निकले अपने दोनों काम के

दाग़ देहलवी

बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं

दाग़ देहलवी

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

यूँही जलाए चलो दोस्तो भरम के चराग़

डी. राज कँवल

हम को छेड़ा तो मचल जाएँगे अरमाँ की तरह

डी. राज कँवल

हम जो मिल बैठें तो यक-जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

हम जो मिल बैठें तो यक जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

दौर-ए-निगाह-ए-साक़ी-ए-मस्ताना एक है

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

ज़बान-ए-हाल से ये लखनऊ की ख़ाक कहती है

चकबस्त ब्रिज नारायण

न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण

फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना

चकबस्त ब्रिज नारायण

अभी बादलों का सफ़र कहाँ मिरे मेहरबाँ

बुशरा हाश्मी

आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं

बिस्मिल इलाहाबादी

जाम-ए-गदाई हाथ में ले नित सांज-सवेरे फिरते हैं

भूरे ख़ान आशुफ़्ता

कब तक गर्दिश में रहना है कुछ तो बता अय्याम मुझे

भारत भूषण पन्त

इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही

भारत भूषण पन्त

अक़्ल दौड़ाई बहुत कुछ तो गुमाँ तक पहुँचे

बेताब अज़ीमाबादी

रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह

बेख़ुद देहलवी

लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें

बेख़ुद देहलवी

हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा

बेख़ुद देहलवी

तमन्ना बन गई है माया-ए-इल्ज़ाम क्या होगा

बेकल उत्साही

सुब्ह क़यामत आएगी कोई न कह सका कि यूँ

बयान मेरठी

ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स

बयान मेरठी

चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली

बशीर बद्र

जो चश्म-ओ-दिल से चढ़ा दूँ नाले ब-आब-ए-अव्वल दोवम-ब-आतिश

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

जहन्नम

बाक़र मेहदी

क्या क्या नहीं किया मगर उन पर असर नहीं

बाक़र मेहदी

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