शोक Poetry (page 150)

अपने वहम-ओ-गुमान से निकला

अब्दुल मतीन नियाज़

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

पा के तूफ़ाँ का इशारा दरिया

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मिरी निगाह को जल्वों का हौसला दे दो

अब्दुल मन्नान तरज़ी

क्या यहाँ देखिए क्या वहाँ देखिए

अब्दुल मन्नान तरज़ी

ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

जब निगाह-ए-तलब मो'तबर हो गई

अब्दुल मन्नान तरज़ी

जब भी गुलशन में चली ठंडी हवा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मेरे घर से उस की यादों के मकीं जाते नहीं

अब्दुल मन्नान समदी

मुझ से मेरी हयात रूठ गई

अब्दुल मलिक सोज़

कुछ हसीं यादें भी हैं दीदा-ए-नम के साथ साथ

अब्दुल मलिक सोज़

हर मसर्रत से किनारा कर लिया

अब्दुल मलिक सोज़

हर मसर्रत से किनारा कर लिया

अब्दुल मलिक सोज़

दिल ग़म-ए-इश्क़ के इज़हार से कतराता है

अब्दुल मलिक सोज़

आज क्यूँ चुप हैं तेरे सौदाई

अब्दुल मलिक सोज़

वो है हैरत-फ़ज़ा-ए-चश्म-ए-मा'नी सब नज़ारों में

अब्दुल मजीद सालिक

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से

अब्दुल मजीद सालिक

ग़म के हाथों मिरे दिल पर जो समाँ गुज़रा है

अब्दुल मजीद सालिक

बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

मरहम-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर हो जाए

अब्दुल मजीद हैरत

मरहम ज़ख़्म-ए-जिगर हो जाए

अब्दुल मजीद हैरत

ईमाँ-नवाज़ गर्दिश-ए-पैमाना हो गई

अब्दुल मजीद हैरत

ईमाँ-नवाज़ गर्दिश-ए-पैमाना हो गई

अब्दुल मजीद हैरत

शाम-ए-ग़म और सितारों के सिवा

अब्दुल मजीद भट्टी

ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म

अब्दुल हमीद अदम

लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने

अब्दुल हमीद अदम

झाड़ कर गर्द-ए-ग़म-ए-हस्ती को उड़ जाऊँगा मैं

अब्दुल हमीद अदम

ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़

अब्दुल हमीद अदम

ज़ख़्म दिल के अगर सिए होते

अब्दुल हमीद अदम

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