शोक Poetry (page 80)

सवाल दिल का शाम-ए-ग़म को और उदास कर गया

हमीद नसीम

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

हमीद नसीम

बे-कराँ दरिया हूँ ग़म का और तुग़्यानी में हूँ

हमीद नसीम

तिरे करम से तिरी बे-रुख़ी से क्या लेना

हमीद नागपुरी

तबस्सुम में न ढल जाता गुदाज़ ग़म तो क्या करते

हमीद नागपुरी

क़ुबूल कर के तेरा ग़म ख़ुशी ख़ुशी मैं ने

हमीद नागपुरी

मुझे रहीन-ए-ग़म-ए-जाँ-नवाज़ रहने दे

हमीद नागपुरी

ख़ुद अपने जज़्ब-ए-मोहब्बत की इंतिहा हूँ मैं

हमीद नागपुरी

फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी

हमीद नागपुरी

कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था

हमीद जालंधरी

साँसों को कर्ब ज़ीस्त ग़म-ए-बे-पनाह को

हमदुन उसमानी

कर्ब वहशत उलझनें और इतनी तन्हाई कि बस

हमदुन उसमानी

इक मुजस्सम दर्द हूँ इक आह हूँ

हमदुन उसमानी

आगे जो क़दम रक्खा पीछे का न ग़म रक्खा

हलीम कुरेशी

कमरा तो ये कहता है कुछ और हवा आए

हलीम कुरेशी

मरीज़-ए-इश्क़ की जुज़-मर्ग दुनिया में दवा क्यूँ हो

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद

हकीम नासिर

कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है

हकीम नासिर

हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू

हकीम नासिर

ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए

हकीम नासिर

आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके

हकीम नासिर

हुस्न भी है पनाह में इश्क़ भी है पनाह में

हैरत गोंडवी

है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से

हैरत गोंडवी

सुना है ज़ख़्मी-ए-तेग़-ए-निगह का दम निकलता है

हैरत इलाहाबादी

फ़स्ल-ए-ग़म की जब नौ-ख़ेज़ी हो जाती है

हैदर क़ुरैशी

इक ख़्वाब कि जो आँख भिगोने के लिए है

हैदर क़ुरैशी

अजीब कर्ब-ओ-बला की है रात आँखों में

हैदर क़ुरैशी

अब के उस ने कमाल कर डाला

हैदर क़ुरैशी

इर्तिकाब-ए-जुर्म शर की बात है

हैदर अली जाफ़री

होता फ़नकार-ए-जदीद और न शाएर होता

हैदर अली जाफ़री

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