हाल Poetry (page 5)

वो जिन की लौ से हज़ारों चराग़ जलते थे

वासिफ़ देहलवी

वो जल्वा तूर पर जो दिखाया न जा सका

वासिफ़ देहलवी

खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर

वासिफ़ देहलवी

उस की तस्वीर क्या लगी हुई है

वसीम ताशिफ़

क़तरे गिरे जो कुछ अरक़-ए-इंफ़िआ'ल के

वसीम ख़ैराबादी

कम सितम करने में क़ातिल से नहीं दिल मेरा

वसीम ख़ैराबादी

ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम'

वसीम बरेलवी

ज़िंदगी तुझ पे अब इल्ज़ाम कोई क्या रक्खे

वसीम बरेलवी

ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को

वक़ार वासिक़ी

लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

रह-ए-कहकशाँ से गुज़र गया हमा-ईन-ओ-आँ से गुज़र गया

वक़ार बिजनोरी

नज़र मिलते ही बरसे अश्क-ए-ख़ूँ क्यूँ दीदा-ए-तर से

वक़ार बिजनोरी

मस्त नज़रों का इल्तिफ़ात न पूछ

वक़ार बिजनोरी

देहली

वामिक़ जौनपुरी

भूका बंगाल

वामिक़ जौनपुरी

नए गुल खिले नए दिल बने नए नक़्श कितने उभर गए

वामिक़ जौनपुरी

जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ

वामिक़ जौनपुरी

हुज़ूर-ए-यार भी आज़ुर्दगी नहीं जाती

वामिक़ जौनपुरी

नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त

वलीउल्लाह मुहिब

मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का

वलीउल्लाह मुहिब

दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें

वलीउल्लाह मुहिब

ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं

वलीउल्लाह मुहिब

दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को

वली उज़लत

बंदे हैं तेरी छब के मह से जमाल वाले

वली उज़लत

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

वली उज़लत

फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद न आया

वली मोहम्मद वली

तिरा लब देख हैवाँ याद आवे

वली मोहम्मद वली

तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ

वली मोहम्मद वली

मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के

वली मोहम्मद वली

आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ

वली मोहम्मद वली

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