हाल Poetry (page 7)
ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे
तिलोकचंद महरूम
कौन से दुख को पल्ले बाँधें किस ग़म को तहरीर करें
तौसीफ़ तबस्सुम
गर्द-आलूद दरीदा चेहरा यूँ है माह ओ साल के ब'अद
तौसीफ़ तबस्सुम
बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत
तौसीफ़ तबस्सुम
तमाम उम्र-ए-रवाँ का माल हैरत है
तसनीम आबिदी
ये कैसी सुब्ह हुई कैसा ये सवेरा है
तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी
पूछे जो तुझ से कोई कि 'तस्कीं' से क्यूँ मिला
मीर तस्कीन देहलवी
तुम ग़ैर से मिलो न मिलो मैं तो छोड़ दूँ
मीर तस्कीन देहलवी
नाम लोगे जो याँ से जाने का
मीर तस्कीन देहलवी
लब से सुनाऊँ हाल क्या दिल का मिरे हबीब
तासीर सिद्दीक़ी
अच्छे हैं फ़ासले के ये तारे सजाते हैं
तासीर सिद्दीक़ी
पत्थरों पर नक़्श उभरा क्यूँ नहीं
तसव्वुर ज़ैदी
ये जो है ताना-बाना होगा क्या
तरकश प्रदीप
कौन सा मैं जवाज़ दूँ सूरत-ए-हाल के लिए
तारिक़ क़मर
सरसब्ज़ थे हुरूफ़ प लहजे में हब्स था
तारिक़ जामी
माँगने से तो हुकूमत नहीं मिलने वाली
तनवीर गौहर
दिलों में बुग़्ज़ के ख़ाने न होते
तनवीर गौहर
बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
तनवीर सिप्रा
छोटी सी खिड़की है
तनवीर अंजुम
इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे
तल्हा रिज़वी बारक़
वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है
तैमूर हसन
मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है
तैमूर हसन
तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए
तहसीन फ़िराक़ी
इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा
तहसीन फ़िराक़ी
ये जो माज़ी की बात करते हैं
ताहिर अज़ीम
इक वहशत सी दर आई है आँखों में
ताहिर अज़ीम
बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे
ताहिर अज़ीम
तन्हा कर के मुझ को सलीब-ए-सवाल पे छोड़ दिया
तफ़ज़ील अहमद
ये हाल मिरा मेरी मोहब्बत का सिला है
ताबिश सिद्दीक़ी
इक उम्र हुई और मैं अपने से जुदा हूँ
ताबिश सिद्दीक़ी
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