अधिकार Poetry (page 15)

है बहुत अँधियार अब सूरज निकलना चाहिए

गोपालदास नीरज

रंगीनी-ए-हवस का वफ़ा नाम रख दिया

गोपाल मित्तल

क्या बताऊँ आज वो मुझ से जुदा क्यूँकर हुआ

गोपाल कृष्णा शफ़क़

कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हिसार-ए-जिस्म मिरा तोड़-फोड़ डालेगा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मसाफ़त की गराँ हर एक साअ'त टूट जाती है

ग़ुफ़रान अमजद

अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे

ग़ुफ़रान अमजद

पत्थर

ग़ज़नफ़र

तीर जैसे कमान से निकला

ग़नी एजाज़

पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़

ग़ालिब

जान दी दी हुई उसी की थी

ग़ालिब

हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू

ग़ालिब

तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच

ग़ालिब

कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में

ग़ालिब

काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर

ग़ालिब

देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे

ग़ालिब

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ

ग़ालिब

दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ

ग़ालिब

बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी

ग़ालिब

दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया

फ़ुज़ैल जाफ़री

अदीब था न मैं कोई बड़ा सहाफ़ी था

फ़ाज़िल अंसारी

वो भी गुमराह हो गया होगा

फ़रताश सय्यद

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