हुआ Poetry (page 114)

अपने दर से जो उठाते हैं हमें

इम्दाद इमाम असर

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट

इमदाद अली बहर

नफ़्स-ए-सरकश को क़त्ल कर ऐ दिल

इमदाद अली बहर

मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा

इमदाद अली बहर

मर गए पर भी न हो बोझ किसी पर अपना

इमदाद अली बहर

मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ

इमदाद अली बहर

ख़ुर्शीद-रुख़ों का सामना है

इमदाद अली बहर

ख़ुदा-परस्त हुए न हम बुत-परस्त हुए

इमदाद अली बहर

ख़ुदा-परस्त हुए हम न बुत-परस्त हुए

इमदाद अली बहर

कभी तो देखे हमारी अरक़-फ़िशानी धूप

इमदाद अली बहर

जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा

इमदाद अली बहर

जड़ाव चूड़ियों के हाथों में फबन क्या ख़ूब

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

इफ़्शा हुए असरार-ए-जुनूँ जामा-दरी से

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

दुपट्टा वो गुलनार दिखला गए

इमदाद अली बहर

दाग़ बैआ'ना हुस्न का न हुआ

इमदाद अली बहर

चार दिन है ये जवानी न बहुत जोश में आ

इमदाद अली बहर

बुतो ख़ुदा पे न रक्खो मोआ'मला दिल का

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

बग़ैर यार गवारा नहीं कबाब शराब

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसी भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

आतिश-ए-बाग़ ऐसे भड़की है कि जलती है हवा

इमदाद अली बहर

आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का

इमदाद अली बहर

हम ज़ईफ़ों को कहाँ आमद ओ शुद की ताक़त

इमाम बख़्श नासिख़

आती जाती है जा-ब-जा बदली

इमाम बख़्श नासिख़

वो बेज़ार मुझ से हुआ ज़ार मैं हूँ

इमाम बख़्श नासिख़

रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

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