हिज्र Poetry (page 17)

है ये शहर-ए-इश्क़ याँ आब-ओ-हवा कुछ और है

इफ़्फ़त अब्बास

मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है

इदरीस बाबर

मैं उसे सोचता रहा या'नी

इदरीस बाबर

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

ये बातें झूटी बातें हैं

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले

इब्न-ए-इंशा

ये विसाल ओ हिज्र का मसअला तो मिरी समझ में न आ सका

हिलाल फ़रीद

वक़्त ने रंग बहुत बदले क्या कुछ सैलाब नहीं आए

हिलाल फ़रीद

आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता

हिलाल फ़रीद

ऐ हिज्र वक़्त टल नहीं सकता है मौत का

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस

हातिम अली मेहर

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

हातिम अली मेहर

ये ख़ाकी आग से हो कर यहाँ पे पहुँचा है

हस्सान अहमद आवान

तमाम तारों को जैसे क़मर से जोड़ा है

हस्सान अहमद आवान

इश्क़ आज़ार कर दिया जाए

हस्सान अहमद आवान

ऐ याद-ए-यार देख कि बा-वस्फ़-ए-रंज-ए-हिज्र

हसरत मोहानी

क़िस्मत-ए-शौक़ आज़मा न सके

हसरत मोहानी

बदल-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ से लाऊँ

हसरत मोहानी

और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है

हसरत मोहानी

अपना सा शौक़ औरों में लाएँ कहाँ से हम

हसरत मोहानी

चाहे सो हमें कर तू गुनहगार हैं तेरे

हसरत अज़ीमाबादी

अब तुझ से फिरा ये दिल-ए-नाकाम हमारा

हसरत अज़ीमाबादी

विसाल-ओ-हिज्र के जंजाल में पड़ा हुआ हूँ

हाशिम रज़ा जलालपुरी

फ़ैसला हिज्र का मंज़ूर भी हो सकता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

इसी उम्मीद पर तो जी रहे हैं हिज्र के मारे

हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक

निगाहें झुक गईं आया शबाब आहिस्ता आहिस्ता

हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक

सूरत है वो ऐसी कि भुलाई नहीं जाती

हसन रिज़वी

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