हिज्र Poetry (page 20)

हाथ से कुछ न तिरे ऐ मह-ए-कनआँ होगा

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

इश्क़ में कब ये ज़रूरी है कि रोया जाए

गोपाल मित्तल

मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

किताब-ए-आरज़ू के गुम-शुदा कुछ बाब रक्खे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

उस से न मिलिए जिस से मिले दिल तमाम उम्र

ग़ुलाम मौला क़लक़

वही वा'दा है वही आरज़ू वही अपनी उम्र-ए-तमाम है

ग़ुलाम मौला क़लक़

उन से कहा कि सिद्क़-ए-मोहब्बत मगर दरोग़

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुझे कल ही से नहीं बे-कली न कुछ आज ही से रहा क़लक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

न रहा शिकवा-ए-जफ़ा न रहा

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है

ग़ुलाम मौला क़लक़

कहिए क्या और फ़ैसले की बात

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की

ग़ुलाम मौला क़लक़

इश्क़ पर फ़ाएज़ हूँ औरों की तरह लेकिन मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हम मुसाफ़िर हैं गर्द-ए-सफ़र हैं मगर ऐ शब-ए-हिज्र हम कोई बच्चे नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी सुब्ह-ए-ख़्वाब के शहर पर यही इक जवाज़ है जब्र का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

चराग़-ए-ख़ाना-ए-दिल को सुपुर्द-ए-बाद कर दूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपने अपने लहू की उदासी लिए सारी गलियों से बच्चे पलट आएँगे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइने में अक्स खिलता है गुल-ए-हैरत नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जाते हैं वहाँ से गर कहीं हम

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है

ग़ज़नफ़र

इक सर्द-जंग का है असर मेरे ख़ून में

ग़ौसिया ख़ान सबीन

आँखों में हया रख के भी बेबाक बहुत थे

ग़ौसिया ख़ान सबीन

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं

ग़ालिब

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं

ग़ालिब

तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है

ग़ालिब

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