हिज्र Poetry (page 22)

हम तो बस

फर्रुख यार

सितारों से शब-ए-ग़म का तो दामन जगमगा उठ्ठा

फ़ारूक़ बाँसपारी

तुम्हारे क़स्र-आज़ादी के मेमारों ने क्या पाया

फ़ारूक़ बाँसपारी

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ बाँसपारी

शहर-ए-दोस्त

फ़ारूक़ बख़्शी

मचलती है मिरे सीने में तेरी आरज़ू क्या क्या

फ़रोग़ हैदराबादी

मिरे हिज्र के फ़ैसले से डरो तुम

फरीहा नक़वी

शनासाई का सिलसिला देखती हूँ

फरीहा नक़वी

न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं

फ़रहत एहसास

दो अलग लफ़्ज़ नहीं हिज्र ओ विसाल

फ़रहत एहसास

दुनिया को कहाँ तक जाना है

फ़रहत एहसास

यही हिसाब-ए-मोहब्बत दोबारा कर के लाओ

फ़रहत एहसास

उस तरफ़ तू तिरी यकताई है

फ़रहत एहसास

मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है

फ़रहत एहसास

मिरे सुबूत बहे जा रहे हैं पानी में

फ़रहत एहसास

मैं शहरी हूँ मगर मेरी बयाबानी नहीं जाती

फ़रहत एहसास

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

जो इश्क़ चाहता है वो होना नहीं है आज

फ़रहत एहसास

जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ

फ़रहत एहसास

हम ने परिंद-ए-वस्ल के पर काट डाले हैं

फ़रहत एहसास

हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की

फ़रहत एहसास

बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला

फ़रहत एहसास

बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और इक जान हो जाते

फ़रहत एहसास

अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़

फ़रहत एहसास

ख़याल आतिशीं ख़्वाबीदा सूरतें दी हैं

फ़रहत अब्बास

शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं

फ़ानी बदायुनी

ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ

फ़ानी बदायुनी

वो पूछते हैं हिज्र में है इज़्तिराब क्या

फ़ानी बदायुनी

वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया

फ़ानी बदायुनी

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