मिरे हिज्र के फ़ैसले से डरो तुम
मैं ख़ुद में अजब हौसला देखती हूँ
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तुम्हारे रंग फीके पड़ गए नाँ?
ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल
भली क्यूँ लगे हम को ख़ुशियों की दस्तक
वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे
आईने से झाँकती नज़्म
दे रहे हैं लोग मेरे दिल पे दस्तक बार बार
हम आज क़ौस-ए-क़ुज़ह के मानिंद एक दूजे पे खिल रहे हैं
शनासाई का सिलसिला देखती हूँ
लड़खड़ाना नहीं मुझे फिर भी
तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है
इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?
उसे भूलने का सितम कर रहे हैं