भली क्यूँ लगे हम को ख़ुशियों की दस्तक
अभी हम मोहब्बत का ग़म कर रहे हैं
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इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?
ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा
खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिए
मिरे हिज्र के फ़ैसले से डरो तुम
शनासाई का सिलसिला देखती हूँ
किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो!!!
हमारे कमरे में पत्तियों की महक ने
वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे
तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है
हथेली से ठंडा धुआँ उठ रहा है
ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल