ऐन मुमकिन है उसे मुझ से मोहब्बत ही न हो
दिल बहर-तौर उसे अपना बनाना चाहे
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1092) Peoples Rate This
तुम मिरी वहशतों के साथी थे
तुम्हें पता है मिरे हाथ की लकीरों में
हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं
दे रहे हैं लोग मेरे दिल पे दस्तक बार बार
मिरे हिज्र के फ़ैसले से डरो तुम
किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो!!!
उसे भूलने का सितम कर रहे हैं
क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे
बीते ख़्वाब की आदी आँखें कौन उन्हें समझाए
एक सौ बीस दिन
खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिए
वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे