तुम्हें पता है मिरे हाथ की लकीरों में
तुम्हारे नाम के सारे हुरूफ़ बनते हैं
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किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो!!!
क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे
भली क्यूँ लगे हम को ख़ुशियों की दस्तक
मिरे हिज्र के फ़ैसले से डरो तुम
उसे भूलने का सितम कर रहे हैं
ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल
तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है
लाख दिल ने पुकारना चाहा
दे रहे हैं लोग मेरे दिल पे दस्तक बार बार
हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं
ऐन मुमकिन है उसे मुझ से मोहब्बत ही न हो
हम आज क़ौस-ए-क़ुज़ह के मानिंद एक दूजे पे खिल रहे हैं