तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है
मगर खोने की भी हिम्मत नहीं है
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शनासाई का सिलसिला देखती हूँ
भली क्यूँ लगे हम को ख़ुशियों की दस्तक
वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे
इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?
किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो!!!
तुम मिरी वहशतों के साथी थे
ऐन मुमकिन है उसे मुझ से मोहब्बत ही न हो
मिरे हिज्र के फ़ैसले से डरो तुम
हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं
हम आज क़ौस-ए-क़ुज़ह के मानिंद एक दूजे पे खिल रहे हैं
खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिए
क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे